
अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन
मध्यस्थ दर्शन
सहअस्तित्ववाद
- प्रणेता एवं लेखक: ए नागराज
सहअस्तित्ववाद
दर्शन
स्रोत
विषय वस्तु
मानव जीनें में प्रयोजन
"आदिकाल से भारत वर्ष से जो ज्ञान की अपेक्षा रही, वो पूरी हो चुकी है "
मध्यस्थ दर्शन अन्य किसी भी दर्शन, विचार, चिंतन, शास्त्र अथवा स्मृति पर आधारित नहीं है|
यह स्वतंत्र रूप में यथार्थ ज्ञान का भाषाकारण (श्रुति) है|
सहअस्तित्व अध्ययनगम्य हो चुकी है|
"व्यापक शून्यावकाश में स्थित अनन्त ब्रम्हाण्डों में से एक ब्रम्हाण्ड में अंगभूत इस पृथ्वी पर वर्तमान में पाये जाने वाले मानव अत्यन्त सौभाग्यशाली है, क्योंकि इनको ह्रास और विकास का अध्ययन एवम् प्रयोग करने का स्वर्णिम अवसर व साधन प्राप्त है ...
पूर्ण विश्वास है कि सांकेतिक तथ्यों का अध्ययन करने के पश्चात् यह ग्रन्थ आपके व्यवहार एवम् आचरण में मानवीयता पूर्ण दृष्टि, गुण व प्रवृत्ति को प्रस्थापित करने की प्रेरणा देगा एवम् आपके व्यक्तित्व के विकास में सहायक होगा।"
"समाधि में हमको ब्रह्म ज्ञान नहीं हुआ| संयम करने से हुआ"
अस्थिरता, अनिश्चयता मूलक भौतिक रासायनिक वस्तु केन्द्रित विचार बनाम विज्ञान विधि से मानव का अध्ययन नहीं हो पाया। रहस्यमूलक आदर्शवादी चिंतन विधि से भी मानव का अध्ययन नहीं हो पाया।
दोनों प्रकार के वादों में मानव को 'जीव' कहा गया है। विकल्प के रूप में अस्तित्वमूलक मानव केन्द्रित चिंतन विधि से मध्यस्थ दर्शन, सहअस्तित्ववाद में मानव को ज्ञानावस्था में होने का पहचान किया एवं कराया। विकल्प के पूर्व...
मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववाद) सार्वभौम मानवीय संविधान, शिक्षा व् स्वराज्य व्यवस्था को प्रतिपादित करता है|
'मध्यस्थ दर्शन' रहस्य से मुक्त है|
यह मनुष्य के सम्पूर्ण आयामों की यथार्थता, वास्तविकता और सत्यता को अध्ययन गम्य और बोध गम्य कराता है|
'मध्यस्थ दर्शन' अनुभव बल की अभिव्यक्ति, सर्वतोमुखी समाधान की संप्रेषणा, न्याय पूर्ण व्यवहार नियम पूर्ण व्यवसाय व् आचरण पूर्ण पद्धति से जीने की कला को करतलगत कराता है|
यह 'चेतना विकास मूल्य शिक्षा' रूप में अध्ययनगम्य है|
व्यापक सत्ता एवं प्रकृति का अनवरत सहअस्तित्व है | समस्त क्रिया (जड़ एवं चैतन्य प्रकृति) शून्य (व्यापक सत्ता) में ही नियंत्रित एवं संरक्षित है, इसीलिए प्रकृति का नाश नहीं है | इससे अधिक अस्तितव में अध्ययन के लिए वस्तु नहीं है | इससे कम में अध्ययन पूरा होता नहीं|
इस धरती में मानव 'जागृति क्रम' में "जीव चेतनावश" - 'अमानवीयता में जी रहा है| यही मानव के सम्पूर्ण समस्याओं का कारण है|
'मानवता' जागृत मानव का कार्य व्यवहार का स्वरुप है - यही विकसित चेतना है| मानव, ज्ञान पूर्वक समाधानित, व् जागृत होता है| अस्तित्व में अनुभूत होता है|
मध्यस्थ दर्शन में 'अनुसन्धान' के ३ आधार बिंदु हैं:
गठनपूर्णता:
जड़ परमाणु परमाणु में परिणाम का अमरत्व| जड़ ही विकास पूर्वक चैतन्य पद को प्राप्त करता है | यही 'जीवन परमाणु' है|
क्रियापूर्णता :
मानव में ज्ञान पूर्वक श्रम का विश्राम, विकसित चेतना पूर्वक जागृति, समाधान - प्रखर प्रज्ञा, सतर्कता, मानवीयतापूर्ण क्रियाकलाप|
आचरणपूर्णता:
मानव में अनुभव प्रमाण पूर्वक गति का गंतव्य| गुणात्मक विकास का परम बिंदु, जागृतिपूर्णता, सत्य, धर्म, निर्भयता, न्याय, नियम, जीवन तृप्ति और उसकी निरंतरता।
मध्यस्थ दर्शन वांग्मय चार दर्शन, तीन वाद तीन शास्त्र तथा संविधान के रूप में प्रकाशित है एवं अध्ययन हेतु मानव सम्मुख प्रस्तुत है|
मध्यस्थ दर्शन: ४ भाग में
मानव व्यवहार दर्शन, कर्म दर्शन, अभ्यास दर्शन, अनुभव दर्शन
सहअस्तित्ववाद: ३ भाग में
समाधानात्मक भौतिकवाद, व्यवहारात्मक जनवाद, अनुभवात्मक अध्यात्मवाद
शास्त्र: ४ भाग में
व्यवहारवादी समाजशास्त्र, आवर्तनशील अर्थशास्त्र, मानव संचेतनावादी मनोविज्ञान, मानवीय संविधान
जीवन विद्या योजनाा:
‘जीवन विद्या लोकव्यापीकरण’ में अस्तित्व, चैतन्य जीवन, जीवन के कार्यक्रम के सत्यता को बोध कराया जाता है|
शिक्षा का मानवीयकरण
‘चेतना विकास मूल्य शिक्षा’ द्वारा 'शिक्षा का मानवीयकरण' जिससे मानव में गुणात्मक परिवर्तन 'विकसित चेतना' के रूप में होता है|
परिवार मूलक ग्राम स्वराज्य व्यवस्था:
अखंड मानव समाज, सार्वभौम व्यवस्था हेतु परिवार से ग्राम, क्षेत्र, राज्य तथा विश्व स्तरीय व्यवस्था दश सोपानों में प्रस्तावित है|
कर्नाटक प्रांत के जन्में श्री अग्रहार नागराज ने सन १९५०-१९७५ 'अज्ञात को ज्ञात' करने अमरकंटक (म.प्र.) में साधना किया|
साधना-समाधि-संयम विधि से उन्हें सम्पूर्ण अस्तित्व का दर्शन हुआ, चैतन्य वस्तु रूपी परमाणु ‘जीवन’ के सम्पूर्ण स्वरूप का ज्ञान हुआ|
उन्हें यथार्थता, वास्तविकता एवं सत्यता अंतिम सत्य के रूप में समझ आया, अस्तित्व में वे अनुभव पूर्वक "जागृत" हुए| जिसे मानव के सम्मुख उन्होंने एक नए दर्शन - ‘मध्यस्थ दर्शन’ के रूप में प्रस्तुत किया है|
श्री नागराजजी के साथ हुए संवाद में से इस समय १०० घंटे वितरण हेतु उपलब्ध है
नागराजजी के सम्पूर्ण प्रकाशित, अप्रकाशित मूल प्रति वाङ्मय, लेख इत्यादि देखें
देखने वाला, वास्तविकता एवं समझ
में निर्भ्रमता
समझने, करने, अनुभव करने वाला
में निर्भ्रमता
सत्य को रहस्य ;
भौतिक शरीर को चैतन्य जीवन ;
तर्क एवं गणित विज्ञान को ज्ञान ;
मानव को अनेक समुदाय ;
अकेले में अर्थ व एकांत में कल्याण ; व
सुविधा संग्रह में सुख
मानना है
- मानव व्यवहार दर्शन
- मानव अनुभव दर्शन
- सत्ता में संपृक्त प्रकृति
सहस्त्तित्व में मध्यस्थ सत्ता (व्यापक रूपी साम्य उर्जा) मध्यस्थ क्रिया (परमाणु का मध्यांश क्रिया) एवं मध्यस्थ जीवन
(जागृति पूर्ण चैतन्य इकाई) अथवा स्वानुशासित चैतन्य जीवन का अध्ययन व् प्रतिपादन जो अनुभव और व्यवहारगम्य है |
अस्तित्व में संपूर्ण आवेशों को सामान्य बनाने और आवेशों से निष्प्रभावित रहने का पूर्ण वैभव। मध्यस्थ सत्ता, मध्यस्थ क्रिया, मध्यस्थ जीवन|
दर्शक-द़ृष्टि के द्वारा द़ृश्य को यथावत समझना और उसकी अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा व प्रकाशन क्रिया।
अस्तित्व में विकास, पूरकता व उदात्तीकरण सूत्र व व्याख्या | विकास क्रम में अग्रिम पद में (जैसे पदार्थावस्था से प्राणावस्था, प्राणावस्था से जीवास्था की रचनाएँ) होने वाली प्रकाशन क्रिया का सूत्र और व्याख्या।
मन वृत्ति को; वृत्ति चित्त को; चित्त बुद्धि को; बुद्धि मध्यस्थ क्रिया को अर्पित होने की क्रिया और अस्तित्व रूपी सत्य में अनुभव होने की क्रिया। साथ ही मध्यस्थ क्रिया बुद्धि को, बुद्धि चित्त को, चित्त वृत्ति को, वृत्ति मन को मूल्यांकित करने वाली क्रिया।
परमाणु में गठनपूर्णता, क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता और उसके क्रिया कलापों को जानना मानना।
जीने का लक्ष्य स्पष्ट, सभी प्रश्नों का उत्तर, बौद्धिक समाधान
सुख, शांति, संतोष...
परिवार, कुटुंब में प्रयोजन पहचान, मूल्य निर्वाह
विश्वास, सम्मान, स्नेह...
परिवार आवश्यकता से अधिक प्राप्ति, 'अभाव का अभाव'...
उदारता, ममता ..
नियम पालन, भागीदारी, सार्थकता पहचान
अखंड मानव समाज
मानव जाति एक, मानव धर्म एक
शिक्षा, उत्पादन, विनिमय, स्वास्थ्य, न्याय; परिवार से विश्व परिवार व्यवस्था सामरस्यता
सार्वभौम अन्तर्राष्ट्र व्यवस्था
नैसर्गिकता, ऋतुमान, वर्षमान का संतुलन बनाये रखना
धरती का संतुलन
मनाकर को साकार करने वाला तथा मन:स्वस्थता को प्रमाणित करने वाले की मानव संज्ञा है
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